आज का शब्द: सुकृति और माखनलाल चतुर्वेदी की कविता- नि:शस्त्र सेनानी

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आज का शब्द: सुकृति और माखनलाल चतुर्वेदी की कविता- नि:शस्त्र सेनानी
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आज का शब्द: सुकृति और माखनलाल चतुर्वेदी की कविता- नि:शस्त्र सेनानी

' हिंदी हैं हम ' शब्द शृंखला में आज का शब्द है- सुकृति , जिसका अर्थ है- उत्तम कृति, अच्छा कार्य। प्रस्तुत है माखनलाल चतुर्वेदी की कविता- नि:शस्त्र सेनानी 'सुजन, ये कौन खड़े हैं?' बंधु! नाम ही है इनका बेनाम, 'कौन-सा करते हैं ये काम?' काम ही है बस इनका काम। 'बहन-भाई', हाँ कल ही सुना, अहिंसा, आत्मिक बल का नाम, 'पिता!' सुनते हैं श्री विश्वेश, 'जननि?' श्री प्रकृति सुकृति सुखधाम। हिलोरें लेता भीषण सिंधु पोत...

परवाह जानते इसे स्वयम् सर्वेश। 'देश?'—यह प्रियतम भारत देश, सदा पशु-बल से जो बेहाल, 'वेश?'—यदि वृंदावन में रहे कहा जावे प्यारा गोपाल! द्रौपदी भारत माँ का चीर, बढ़ाने दौड़े यह महराज, मान लें, तो पहनाने लगूँ, मोर-पंखों का प्यारा ताज! उधर वे दुःशासन के बंधु, युद्ध-भिक्षा की झोली हाथ; इधर ये धर्म-बंधु, नय-सिंधु, शस्त्र लो, कहते हैं—'दो साथ।' लपकती हैं लाखों तलवार, मचा डालेंगी हाहाकार, मारने-मरने की मनुहार, खड़े हैं बलि-पशु सब तैयार। किंतु क्या कहता है...

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