आज का शब्द: विरंचि और शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की कविता 'मिट्टी की महिमा'

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आज का शब्द: विरंचि और शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की कविता 'मिट्टी की महिमा'
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aaj ka shabd viranchi shivmangal singh suman hindi kavita mitti ki mahima आज का शब्द: विरंचि और शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की कविता 'मिट्टी की महिमा'

हिंदी हैं हम शब्द-श्रृंखला में आज का शब्द है विरंचि जिसका अर्थ है ब्रह्मा। कवि शिवमंगल सिंह सुमन ने अपनी कविता में इस शब्द का प्रयोग किया है। निर्मम कुम्हार की थापी से कितने रूपों में कुटी-पिटी, हर बार बिखेरी गई, किंतु मिट्टी फिर भी तो नहीं मिटी! आशा में निश्छल पल जाए, छलना में पड़ कर छल जाए सूरज दमके तो तप जाए, रजनी ठुमकी तो ढल जाए, यों तो बच्चों की गुडिया सी, भोली मिट्टी की हस्ती क्या आंधी आए तो उड़ जाए, पानी बरसे तो गल जाए। फसलें उगतीं, फसलें कटती लेकिन धरती चिर उर्वर है सौ बार बने सौ बर...

तांड़व शरमाए यों मदिरालय के प्याले सी मिट्टी की मोहक मस्ती क्या अधरों को छू कर सकुचाए, ठोकर लग जाए छहराए! उनचास मेघ, उनचास पवन, अंबर अवनि कर देते सम वर्षा थमती, आँधी रुकती, मिट्टी हँसती रहती हरदम, कोयल उड़ जाती पर उसका निश्वास अमर हो जाता है मिट्टी गल जाती पर उसका विश्वास अमर हो जाता है! मिट्टी की महिमा मिटने में मिट मिट हर बार संवरती है मिट्टी मिट्टी पर मिटती है मिट्टी मिट्टी को रचती है मिट्टी में स्वर है, संयम है, होनी अनहोनी कह जाए हंसकर हालाहल पी जाए, छाती पर सब कुछ सह जाए, यों तो ताशों के...

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