बिहार के समस्तीपुर जिले सहित आसपास के जिलों में धान की खेती बड़े पैमाने पर किसानों द्वारा की जा रही है. धान की फसल में जिंक की कमी से पौधों की वृद्धि और गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना बनी रहती है, जिससे उत्पादन में कमी और पोषण संबंधी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं.
डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा के वैज्ञानिक डॉक्टर एस के सिंह ने Local18 को बताया कि धान की फसल में जिंक की कमी से पौधे पर पड़ने वाले विविध प्रभाव को प्रबंध करने के लिए सबसे पहले, मिट्टी का परीक्षण कर जिंक की मात्रा और पीएच स्तर का निर्धारण करें. इससे यह पता चलेगा कि मिट्टी में जिंक की कमी कितनी है और पीएच के स्तर में कोई असामान्यता है या नहीं इस विषय पर भी ध्यान देने की जरूरत है.
जिंक युक्त उर्वरकों का उपयोग: जिंक की कमी को पूरा करने के लिए जिंक युक्त उर्वरकों का प्रयोग करें. यह जिंक की उपलब्धता को मिट्टी में बढ़ा देता है. पत्ते पर स्प्रे: गंभीर मामलों में, जिंक युक्त पत्ते पर स्प्रे करके पौधों को सीधे जिंक प्रदान करें. इसके लिए 5 किलोग्राम जिंक सल्फेट और 2.5 किलोग्राम बुझा हुआ चूना को 1000 लीटर पानी में मिलाकर हर 10 दिन में तीन बार छिड़काव करें. बुझे हुए चूने की जगह 2% यूरिया का उपयोग भी किया जा सकता है.
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