आज का शब्द: लीक और गिरिजाकुमार माथुर की कविता- जो अँधेरी रात में भभके अचानक

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आज का शब्द: लीक और गिरिजाकुमार माथुर की कविता- जो अँधेरी रात में भभके अचानक
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आज का शब्द: लीक और गिरिजाकुमार माथुर की कविता- जो अँधेरी रात में भभके अचानक

' हिंदी हैं हम ' शब्द शृंखला में आज का शब्द है- लीक , जिसका अर्थ है- लकीर, रेखा, व्यवहार, लोक नियम, प्रतिष्ठा, प्रथा, चाल। प्रस्तुत है गिरिजाकुमार माथुर की कविता- जो अँधेरी रात में भभके अचानक जो अँधेरी रात में भभके अचानक चमक से चकाचौंध भर दे मैं निरंतर पास आता अग्निध्वज हूँ कड़कड़ाएँ रीढ़ बूढ़ी रूढ़ियों की झुर्रियाँ काँपें घुनी अनुभूतियों की उसी नई आवाज़ की उठती गरज हूँ। जब उलझ जाएँ मनस गाँठें घनेरी बोध की हो जाएँ सब गलियाँ अँधेरी तर्क और विवेक पर बेसूझ जाले मढ़ चुके जब वैर रत...

निपट अनिवार्यता हो परम अस्वीकार की झुकने न वाली मैं क़सम हूँ। हो चुके हैं सभी प्रश्नों के सभी उत्तर पुराने खोखले हैं व्यक्ति और समूह वाले आत्मविज्ञापित ख़जाने पड़ गए झूठे समन्वय रह न सका तटस्थ कोई वे सुरक्षा की नक़ाबें मार्ग मध्यम के बहाने हूँ प्रताड़ित क्योंकि प्रश्नों के नए उत्तर दिए हैं है परम अपराध क्योंकि मैं लीक से इतना अलग हूँ। सब छिपाते थे सच्चाई जब तुरत ही सिद्धियों से असलियत को स्थगित करते भाग जाते उत्तरों से कला थी सुविधापरस्ती मूल्य केवल मस्लहत थे मूर्ख थी निष्ठा प्रतिष्ठा सुलभ थी...

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