वत्स द्वदशी व्रत में सुबह व्रतियों को स्नान ध्यान करके पहले गाय की पूजा करनी चाहिए। इसके बाद बछड़े की पूजा करनी चाहिए। इनके साथ ही अपने कुल देवी देवता और श्रीकृष्ण की पूजा करनी चाहिए। इस व्रत को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं जिनमें एक साहूकार के पोते की कथा और गाय के बछड़े की कथा प्रचलित...
वत्स द्वादशी और बछ बारस हर साल भाद्र मास की कृष्ण पक्ष की द्वादशी को मनाया जाता है जो इस साल 30 अगस्त यानी आज है। यह व्रत मूल रूप मे माताएं अपनी संतान की दीर्घायु और कुशलता के लिए रखती हैं। राजस्थान में इस व्रत की अधिक मान्यता है। जैसा कि इस व्रत का नाम है बछ बारस, इस व्रत में बछ यानी बछड़े और उनकी माता गाय की पूजा होती है। इस व्रत का विधान है कि इस व्रत में भैंस के दूध और उससे बनी चीजों का सेवन नहीं किया जाता है। साथ ही इसमें छूरी चाकू का प्रयोग भी नहीं करना होता है। व्रत रखने वाली माताओं को...
सास ने बात को बीच में काटते हुए कहा कि पहले गाय की पूजा करेंगे फिर बछड़े की। बहू को समझ में आ गया कि उससे बहुत बड़ी भूल हो गई है। वह घबरा गई और भगवान से अपनी भूल के लिए क्षमा मांगने लगी और कहने लगी कि हे भगवान मेरी लाज रखो, मुझे क्षमा करो। भगवान को बहू की भोलेपन और सच्ची प्रार्थना पर दया आ गई और बछड़े जीवित होकर हंडी से निकल बाहर आ गए। इसके बाद से संतान की सलामती के लिए माताएं बछ बारस यानी वत्स द्वादशी का व्रत रखने लगीं।वत्स द्वादशी साहूकार कीएक साहूकार ने एक तालाब बनवाया लेकिन इसमें जल ही नहीं...
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