बॉलीवुड की क्लासिक फिल्म 'शोले' ने 50 सालों तक सिनेमाघरों में लोगों के दिलों को जीता हुआ रखा है. फिल्म के किरदार, गाने और डायलॉग आज भी लोगों के जुबान पर हैं.
नई दिल्ली. बॉलीवुड में कुछ फिल्मों को सदाबहार फिल्मों का टैग मिला है. इसमें कुछ फिल्मों को रिलीज हुए 10 नहीं बल्कि 50-60 साल भी हो गए हैं. आज के दौर में भी सिनेमा प्रेमियों को इन फिल्मों की कहानियां लुभा लेती हैं. साल 1975 में रिलीज हुई फिल्म ‘शोले’ भी इसी लिस्ट में शामिल है. सालों पहले बनी इस फिल्म के गाने और डायलॉग्स के साथ फिल्म के किस्से आज भी लोगों के चेहरे पर मुस्कान ला देते हैं. बात कर रहे हैं रमेश सिप्पी के डायरेक्शन में बनीं ऐतिहासिक फिल्म ‘शोले’ की.
बॉलीवुड के इतिहास में और कितने दिलचस्प रिवेंज ड्रामा देखने को मिले, लेकिन ‘शोले’ जैसा अब तक नहीं. कल्ट क्लासिक फिल्मों की जब-जब बात होती है तो उस लिस्ट में सबसे ऊपर वो मल्टी स्टारर फिल्म आती है, जिसके किरदार ही नहीं लोगों को डायलॉग्स और गाने 5 दशक के बाद भी याद हैं. रिलीज के वक्त सिनेमाघर थे खाली ‘गब्बर’, ‘ठाकुर’, ‘जय-वीरू और ‘बसंती’ वो किरदार, जिन्होंने दिलों पर राज किया. फिल्म को रिलीज हुए इस साल 50 साल पूरे हो जाएंगे. लेकिन फिल्म के किस्से कहानियों के साथ फिल्म से जुड़ी हर याद आज भी लोगों को लुभाती है. लेकिन रिलीज के वक्त नजारा ऐसा नहीं था. जब फिल्म रिलीज हुई तो सिनेमाघर बिल्कुल खाली थे. मेकर्स परेशान हो गए क्योंकि क्रिटिक्स ने इसे फ्लॉप करार दे दिया था. रमेश सिप्पी ने फिल्म की शूटिंग में असली गोलियों का यूज़ किया था. रिलीज के तीन दिन बाद हुआ था कमाल वक्त ने पलटी मारी और रिलीज के तीन दिनों जब फिल्म के गाने ‘कोई हसीना जब रूठ जाती है’, ‘जब तक है जान’ लोगों की जुबां पर चढ़े, तो ये यादगार और आइकॉनिक फिल्मों में से एक बन गई. फिल्म फिर ऐसी चली की रुकने का नाम नहीं लिया. ये पहली मल्टीस्टारर फिल्म बनीं, जिसने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए. आलम ये था कि फिल्म का टिकट खरीदने के लिए लोग घंटों लाइन में लगा करते थे. टिकट देख चमक जाएंगी आंखें 50 साल पहले आपने ये फिल्म सिनेमाघरों में देखी हो या न देखी हो. लेकिन फिल्म का चर्चाओं की तरह फिल्म का टिकट भी वायरल हो रहा है. उस दौर के टिकट और आज के सिनेमाघरों के टिकट में धरती आसमान का अंतर है. 1975 में सिनेमाघरों में टिकट की कीमतें बहुत कम हुआ करती थीं. लॉअर स्टॉल, मिडल स्टॉल और बालकनी का किराया देख आप कहेंगे. इतने में तो आज पानी की बोतल भी नहीं आएंगी. फिल्म का जो टिकट वायरल हो रहा है, उसमें लॉअर स्टॉल: 1.50 से 2.00 रुपए, मिडल स्टॉल: 2.50 रुपए और सबसे महंगा टिकट बालकनी का था वो भी सिर्फ 3 रुपए. ‘शोले’ का टिकट वायरल हो रहा है. किसको कितनी मिली थी फीस उस वक्त इस फिल्म को बनाने में 3 करोड़ रुपए खर्च हुए थे. इसमें से 20 लाख रुपए सिप्पी ने कास्टिंग पर खर्च किए थे. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो ‘वीरू’ के किरदार को निभाने के लिए धर्मेंद्र को सिर्फ 1 लाख 50 हजार रुपये मिले थे. ‘ठाकुर बलदेव सिंह’ का किरदार निभाने के लिए संजीव कुमार को 1 लाख 25 हजार रुपये मिले थे. ‘जय’ के किरदार के लिए अमिताभ बच्चन को संजीव कुमार से भी कम फीस मिली थी. उन्हें इस किरदार के लिए सिर्फ 1 लाख रुपये मिले थे. हेमा मालिनी ने ‘बसंती’ का किरदार निभाकर फिल्म में जान डाल दी थी. उन्होंने इस फिल्म के लिए सिर्फ 75 हजार रुपये फीस के तौर पर मिले थे. ‘गब्बर सिंह’ यानी अमजद खान को हेमा मालिनी से भी कम फीस मिली थी. उन्हें इस रोल के लिए मात्र 50 हजार रुपये फीस हासिल हुई थी. ‘राधा’ का किरदार निभाने के लिए जया भादुड़ी को सिर्फ 35 हजार रुपये मिले थे. वहीं, ‘जेलर’ असरानी को केवल 15 हजार रुपये मिले, ‘कालिया’ विजू खोत का फीस के तौर पर 10 हजार रुपये, ‘सांबा’ यानी मैक मोहन को 12 हजार रुपए और ‘रहीम चाचा’ को सिर्फ 8 हजार मेहताना मिला था. गब्बर सिंह का किरदार बागी डाकू गब्बर सिंह गुर्जर से प्रेरित था, जो 1950 के दशक में चंबल घाटी में सक्रिय था. 50 साल पहले फिल्म ने कमाए थे 35 करोड़ ये फिल्म साल 1975 में सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बनी. यह फिल्म लगातार 5 सालों तक सिनेमाघरों में चलती रही. मुंबई के मिनर्वा थिएटर में इसे करीब 286 हफ्तों तक चलाया गया, जो एक रिकॉर्ड है. फिल्म ने उस दौर में करीब 35 करोड़ की कमाई की थी
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