सुप्रीम कोर्ट ने धर्मनिरपेक्ष और समाजवाद शब्दों को हटाने की याचिका खारिज कर दी

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सुप्रीम कोर्ट ने धर्मनिरपेक्ष और समाजवाद शब्दों को हटाने की याचिका खारिज कर दी
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सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय संविधान से धर्मनिरपेक्ष और समाजवाद शब्दों को हटाने की मांग वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया है। पूर्व राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी, अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन और अन्य द्वारा दायर की गई ये याचिकाएँ 1976 में पारित हुए संविधान संशोधन के तहत इन शब्दों को जोड़ने को चुनौती दे रही थीं।

भारतीय संविधान से धर्मनिरपेक्ष और समाजवाद शब्दों को हटाने की मांग वाली याचिका ओं को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। ये याचिका एं पूर्व राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी, अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन और अन्य के द्वारा दायर की गई थीं। गौरतलब है कि साल 1976 में पारित हुए संविधान संशोधन के तहत धर्मनिरपेक्ष और समाजवाद जैसे शब्दों को जोड़ा गया था। बीते शुक्रवार को ही सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। इंदिरा गांधी सरकार में जोड़े गए थे ये शब्द बता दें कि 1976 में इंदिरा गांधी सरकार ने

42वें संवैधानिक संशोधन करके संविधान की प्रस्तावना में 'समाजवादी', 'धर्मनिरपेक्ष' और 'अखंडता' शब्द शामिल किए थे। इस संशोधन के बाद प्रस्तावना में भारत का स्वरूप 'संप्रभु, लोकतांत्रिक गणराज्य' से बदलकर 'संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य' हो गया था। सुनवाई के दौरान अपनी दलील देते हुए याचिकाकर्ता अधिवक्ता विष्णु कुमार जैन ने नौ-न्यायाधीशों की संविधान पीठ के एक हालिया फैसले का हवाला दिया। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 39(बी) पर 9 जजों की पीठ के फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि उस फैसले में शीर्ष कोर्ट ने 'समाजवादी' शब्द की उस व्याख्या पर असहमति जताई जिसे शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति वी आर कृष्णा अय्यर और ओ चिन्नप्पा रेड्डी ने प्रतिपादित किया था। सुप्रीम कोर्ट ने संशोधन का किया था बचाव इस पर सीजेआई खन्ना ने कहा कि भारतीय संदर्भ में हम समझते हैं कि भारत में समाजवाद अन्य देशों से बहुत अलग है। हम समाजवाद का मतलब मुख्य रूप से एक कल्याणकारी राज्य समझते है। कल्याणकारी राज्य में उसे लोगों के कल्याण के लिए खड़ा होना चाहिए और अवसरों की समानता प्रदान करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत ने 1994 के एसआर बोम्मई मामले में 'धर्मनिरपेक्षता' को संविधान की मूल संरचना का हिस्सा माना था। वकील जैन ने आगे तर्क दिया कि संविधान में 1976 का संशोधन लोगों को सुने बिना पारित किया गया था क्योंकि यह आपातकाल के दौरान पारित किया गया था। इन शब्दों को शामिल करने का मतलब लोगों को विशिष्ट विचारधाराओं का पालन करने के लिए मजबूर करना होगा। उन्होंने कहा कि जब प्रस्तावना एक कट-ऑफ तारीख के साथ आती है, तो इसमें नए शब्द कैसे जोड़े जा सकते हैं? पीठ ने कहा कि संविधान का अ

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