इस बार के चुनाव प्रचार में वैसे तो सत्ताधारी बीजेपी और विपक्ष ने कई मुद्दों को उठाया लेकिन एक बात जिसकी शायद सबसे ज़्यादा चर्चा हुई वो है, भारतीय संविधान और आरक्षण.
लोकसभा चुनाव के छह चरण हो चुके हैं और अब सिर्फ़ सातवां और अंतिम चरण बाक़ी है. इसके लिए एक जून को वोट डाले जाएंगे. चार जून को वोटों की गिनती होगी.
बीजेपी के इन्हीं कुछ नेताओं के बयान को आधार बनाकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी, राजद नेता लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव, शिवसेना के उद्धव ठाकरे समेत विपक्ष के लगभग हर नेता कहने लगे कि अगर मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बनते हैं तो संविधान और आरक्षण दोनों ख़तरे में पड़ जाएगा. कुछ संशोधन संसद में साधारण बहुमत से पास हो जाते हैं और कुछ संशोधन के लिए विशेष बहुमत की ज़रूरत होती है.
कुछ लोगों को लगता है कि सदन के सारे काम तो संसद की साधारण बहुमत से हो ही सकते हैं, ऐसा क्या है जिसे करने के लिए बीजेपी को 400 सीटों की ज़रूरत है? पटना के मनेर इलाक़े के रहने वाले विकास कुमार, मगध विश्वविद्यालय से पीएचडी कर रहे हैं. उनका कहना है, “दलितों में यह चेतना है कि बीजेपी आरक्षण को ख़त्म कर सकती है या इसे कम कर सकती है. इसी के लिए ईडब्लूएस कैटिगरी को लाया गया है. आरक्षण का लाभ पाने वाले जो सामाजिक दंश को झेलते हैं, उनके मन में संविधान और आरक्षण के भविष्य को लेकर डर है और यह उनके वोटिंग पैटर्न में ज़रूर दिख रहा है.
पटना के एएन सिंहा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल स्टडीज़ के प्रोफ़ेसर विद्यार्थी विकास ने दलितों और आदिवासियों के सामाजिक आर्थिक पहलू पर काफ़ी शोध किया है. अगर वाक़ई इस तरह का डर है तो क्या उनके वोटिंग पैटर्न पर भी इसका असर पड़ रहा है, इस सवाल के जवाब में दारापुरी कहते हैं, "अभी तक जो चुनाव हुआ है, दलितों ने इसी अंदेशे को देखते हुए एक रणनीति अपनाई है कि भाजपा हराओ और गठबंधन जिताओ. वो मायावती को भी वोट नहीं दे रहे हैं.''
हालांकि पुरुष इस मामले में जागरूक दिखे. मंशाराम कहते हैं, “सरकार मनुस्मृति को लागू करना चाहती है. दलित किस हाल में हैं यह तो टोले को देखकर अंदाज़ा लगा ही सकते हैं. ऐसे में आरक्षण भी ख़त्म कर देंगे तो हमारा क्या होगा?"कारण पूछने पर कहते हैं, "हम तो बसपा को ही जानते हैं." नागपुर स्थित वरिष्ठ पत्रकार रवि गजभिए ने बीबीसी संवाददाता मयूरेश कोण्णूर से बातचीत करते हुए कहा, “चुनाव की घोषणा से पहले ही ईवीएम को लेकर यहां जो विरोध प्रदर्शन हुए थे उसी दौरान नागपुर और विदर्भ के इलाक़ों में संविधान बदलने की आशंका पर बातचीत होने लगी.''
दूसरी तरफ़ उद्धव ठाकरे ने अपने मुखपत्र सामना में एक इंटरव्यू में कहा, “उन्हें यह बात पसंद नहीं है कि उन्हें डॉक्टर आंबेडकर के लिखे संविधान का पालन करना पड़ता है जो कि दलित समाज से आते थे. इसीलिए बीजेपी इसे बदलने की कोशिश कर रही है.” दलित समाज से आने वाले सचिन मगाडे एक होटल में मैनेजर की नौकरी करते हैं. उनका मानना है कि राजनीतिक पार्टियां संविधान के प्रति दलितों की भावना का राजनीतिक लाभ लेना चाहती हैं.
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