विधानसभा चुनाव परिणाम: आशा और आशंका के बीच जनतंत्र कहां है AssemblyElection2022 BJP Democracy विधानसभाचुनाव2022 भाजपा लोकतंत्र
आशंका सच साबित हुई. आशा आकाशकुसुम बनकर रह गई. लेकिन जो एक के लिए आशंका है, वह दूसरे के लिए आशा है.
माना जा रहा था कि पिछले वर्षों में तेज़ी से बढ़ी बेरोज़गारी, आर्थिक बदहाली, कोरोना संक्रमण के दौरान सरकार की कुव्यवस्था आदि का असर मतदाताओं पर होगा. जब वे नई सरकार बनाने के लिए विधानसभा चुनेंगे तो इस रिकॉर्ड को ध्यान में रखेंगे. लेकिन यह नहीं हुआ. नेता के प्रति जो अगाध विश्वास है, वह उसके हर निर्णय को सही ठहराने के लिए तर्क खोजने का काम भी मतदाताओं के ज़िम्मे कर देता है. लेकिन उस नेता में यह विश्वास कैसे और क्योंकर पैदा हुआ? क्यों उस नेता का आकर्षण दुर्निवार है? इसके कारण खोजना बहुत मुश्किल नहीं है.
गुजरात में 2002 के मुसलमानों के जनसंहार को ढिठाई से झुठलाने और साथ ही उचित ठहराने की नेता की हिमाक़त ने उसकी जनता का दिल जीत लिया. वह जितना ढीठ होता गया, जनता उतना ही उसकी होती चली गई. उसने उन्हें हिंसा करने की छूट दी, उन्हें उसके लिए उकसाया, उसका औचित्य प्रस्तुत किया. यह कथा लंबी है और कभी इस पर चर्चा अवश्य होनी चाहिए लेकिन जब बुद्धिजीवी कहते हैं कि नरेंद्र मोदी स्थिर व्यवस्था के भंजक के रूप में, एक क्रांतिकारी के रूप में अवतरित हुए तो उन्हें बतलाना पड़ेगा कि उस व्यवस्था की नींव धर्मनिरपेक्षता की थी. मामला इसे तोड़ने का था. नरेंद्र मोदी ने इसमें पुराना संसदीय संकोच पूरी तरह छोड़ने का ‘साहस’ प्रदर्शित किया.
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