कृत्रिम गर्भनाल विकसित करने के लिए आजमाई जा रही तकनीकें सफल रहीं तो ये लाखों महिलाओं के लिए वरदान साबित हो सकती हैं.
कृत्रिम गर्भनाल और गर्भाशय तय वक्त से पहले पैदा होने वाले शिशुओं के जीवन को बचा सकते हैं, लेकिन अहम प्रश्न है कि इसका मानव परीक्षण शुरू होने से पहले नैतिकता की दृष्टि से किन-किन बातों पर ध्यान दिया जाना चाहिए?
गौरतलब है कि ऐसे प्री मैच्योर शिशुओं को जीवन भर कई संभावित स्वास्थ्य संबंधी खतरों से दो-चार होना पड़ता है. वक्त से पहले पैदा हुए इन शिशुओं को अक्सर गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से दो चार होना पड़ता है. इन शिशुओं का वजन जन्म के समय 2 पाउंड से कम होता है और हृदय, फेफड़े, पाचन अंग और मस्तिष्क जैसे महत्वपूर्ण अंग पूर्ण रूप से विकसित नहीं हुए होते हैं. इसके चलते गहन चिकित्सा देखभाल के बिना ऐसे शिशु को जीवित रखना मुश्किल हो जाता है.
इस विषय में मिशिगन विश्वविद्यालय के सीएस मॉट चिल्ड्रेन्स हॉस्पिटल में सर्जरी और प्रसूति व स्त्री रोग प्रोफेसर, जॉर्ज बी. मायचलिस्का का कहना है , "गर्भावस्था की इस प्रारंभिक अवस्था में फेफड़े अभी भी विकसित होने की अवस्था में होते हैं और उनके अंदर तरल पदार्थ भरा होना चाहिए." आंख के रेटिना को पोषण देने वाली रक्त वाहिकाएं जन्म का समय नजदीक होने तक भी पूरी तरह से बनी नहीं होती हैं. बहुत अधिक ऑक्सीजन नई असामान्य रक्त वाहिकाओं के विकास को उत्तेजित कर सकती है. और यह बाद में रेटिना के अपने आसपास के ऊतकों से अलग होने का सबब बन सकती है.
यह विधि रक्त को हृदय और फेफड़ों से “बचकर निकलने" का मौका देती है, जिससे इन अंगों को न केवल आराम मिलता है बल्कि इन्हें ठीक होने का अवसर भी मिलता है. प्रयोग के दैरान फ़्लेक और उनके सहयोगियों ने 2017 में 23 से 24 सप्ताह अवधि के मानव भ्रूण के बराबर गर्भावधि वाले, समय से पहले जन्मे, आठ मेमनों को लिया. उन्होंने उन मेमनों को कृत्रिम गर्भाशय में चार सप्ताह तक जीवित रखा. इस दौरान मेमनों का विकास स्वाभाविक रूप से हुआ, यहां तक कि उनके बाल भी उगने लगे थे.कृत्रिम गर्भाशय कितनी बड़ी उपलब्धि
मायचलिस्का का कहना, "मैं एक ऐसा मंच चाहती थी जो अधिकांश शिशुओं को सहज मुहैया हो, और जिसका उपयोग मौजूदा इंटेंसिव केयर यूनिट में किया जा सके." तीसरा समूह, ऑस्ट्रेलिया और जापान की एक टीम है. यह टीम एक्स विवो यूटेराइन एनवायरनमेंट थेरेपी नाम से एक कृत्रिम गर्भाशय विकसित कर रही है. इसका उद्देश्य अन्य दो समूहों की तुलना में समय से बहुत ही पहले जन्मे और बीमार भ्रूणों का इलाज करना है.
"उनका विकास बहुत खराब होता है, और उनके रक्तचाप और रक्त प्रवाह को सामान्य बनाए रखना बहुत मुश्किल होता है. इसलिए, यह एक ऐसा मामला है जहां हम कुछ अच्छी प्रगति तो कर रहे हैं, लेकिन हमें बहुत सारी चीज़ों को समझने की भी ज़रूरत है." “इसलिए हम उन सामान्य विकास प्रक्रियाओं को संचालित करने में गर्भनाल की भागीदारी को समझने की कोशिश कर रहे हैं. अभी हमारी कोशिशें यहीं तक पहुंची हैं. देखा जाए तो यह एक बहुत बड़ा काम है." इसमें कई नैतिक प्रश्न भी शामिल हैं.
"इसमें गर्भाशय से गुजरने वाली मांसपेशीय परत में एक लंबा चीरा लगाया जाता है, इसका प्रभाव भविष्य में होनेवाले गर्भधारण पर पड़ सकता है. ऐसे में फैसला करना मुश्किल होता है कि सिजेरियन सेक्शन कराया जाए या बच्चा को योनि से ही प्रसव कराया जाए." जिन शिशुओं का पारंपरिक उपचार से इलाज हो जाता था, उनका इलाज नई तकनीक से कर सकते हैं भले ही उसका अभी तक परीक्षण नहीं हुआ है, इसमें ज़ोखिम का प्रतिशत बहुत कम हैएक बच्चे को तुरंत विस्तारित व्यवस्था पर स्थानांतरित करने में एक और समस्या यह है कि इस बात का आकलन करने का कोई अवसर नहीं मिल पाता है कि पारंपरिक चिकित्सा का रास्ता अपनाने पर उस बच्चे का क्या होगा.
जो भी तकनीक पहले परीक्षण तक पहुंचे लेकिन परीक्षण में पहले प्रतिभागी शायद 24 सप्ताह पूर्व पैदा हुए बच्चे होंगे. ऐसे बच्चे जिन्हें पारंपरिक उपचार से भले ही अच्छे नतीजे मिले हों लेकिन फिर भी उनके जीवित रहने की संभावना बहुत कम होगी.
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