महाराष्ट्र में 2024 लोकसभा चुनाव राज्य की दो प्रमुख पार्टियों की टूट के साए में हो रहे हैं. 2014 और 2019 के चुनावों में बीजेपी और शिवसेना ने 41 सीटों पर जीत दर्ज की थी. भाजपा के लिए महाराष्ट्र में 2019 वाला प्रदर्शन दोहराना कितनी बड़ी चुनौती है.
भ्रम, कोलाहल, गड़बड़ी... महाराष्ट्र में शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में टूट के बाद कई लोगों से यही शब्द सुनाई पड़े.भाजपा, कांग्रेस के अलावा अब यहां दो सेना और दो पवार वाली पार्टियां हैं.
उनके नज़दीक ही खड़े दर्शन पाटिल ने पलटकर कहा, "भाजपा तोड़ रही है, इसका मतलब तुम्हारे में कुछ तो कमियां हैं, इस वजह से वो लोग तोड़ रहे हैं." जालना ज़िले के अंतरवाली सराटी गांव में मनोज-जरांगे पाटिल मराठा आरक्षण के लिए आंदोलन कर रहे हैं. गांव में हमें भाजपा के प्रति नाराज़गी दिखी. देश के दूसरे हिस्सों की तरह भाजपा-शासित महाराष्ट्र में भी बेरोज़गारी, महंगाई, किसानों की समस्या आदि चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैं, लेकिन पार्टी कार्यकर्ताओं को उम्मीद है कि प्रधानमंत्री मोदी का ज़ोर उनकी नाव किनारे लगा देगा.
महाराष्ट्र कांग्रेस का गढ़ रहा था लेकिन आपसी कलह कांग्रेस के लिए चुनौती रही है. लेकिन इसके बावजूद मराठवाड़ा, विदर्भ में अभी भी ऐसे इलाक़े हैं जहां कांग्रेस का ज़ोर है. साल 1987 में जब शरद पवार वापस कांग्रेस में शामिल हुए, मराठी मानुस की बात करने वाली शिवसेना कांग्रेस-विरोध का स्तंभ बनी और उसके बढ़ने की शुरुआत हुई. वक़्त के साथ मराठी मानुस की बात हिंदुत्व में तब्दील हो गई. कुछ और परिस्थितियों के कारण गठबंधन में भाजपा का पलड़ा भारी होता गया.
उनके मुताबिक़ राज्य में उद्धव ठाकरे के मुक़ाबले एकनाथ शिंदे की पहुंच सीमित है. वो कहते हैं, "भाजपा को लगा सभी ठाकरे समर्थक शिंदे की तरफ़ हो जाएंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. भाजपा को एहसास हुआ कि अजीत पवार का असर पूना ज़िले तक सीमित है. ऐसी सोच है कि ये कुछ ज़्यादा ही हो गई, कि मराठी मानुस को हमेशा दिल्ली से चुनौती मिलती है."
ये सहानुभूति कितनी गहरी है, ये साफ़ नहीं है लेकिन एकनाथ शिंदे का हाथ थामने वाले शिवसैनिक नरेश म्हस्के चुनाव में उद्धव या शरद पवार के लिए किसी भी सहानुभूति से इनकार करते हैं. ठाणे के अपने दफ़्तर में कार्यकर्ताओं की मौजूदगी में उन्होंने पूछा, "उद्धव ठाकरे ने पिछले विधानसभा में किसके साथ गठबंधन किया? भाजपा के साथ. चुनकर किसके साथ आए? भाजपा के साथ. थोड़ा आंकड़े कम ज़्यादा होने के बाद तुरंत कांग्रेस के साथ चले गए. अगर ये नियम इन पर लागू है तो उन पर भी लागू है.
आज यहां शिवेसना के दो फाड़, एनसीपी के दो फाड़, भाजपा, कांग्रेस, प्रकाश आंबेडकर की वंचित बहुजन आघड़ी, एआईएमआईएम हैं. टिकट न मिलने से या राजनीतिक महत्वाकांक्षा से ऐसे कई नाराज़ नेता हैं जो या तो पार्टी बदल रहे हैं, या सही वक़्त का इंतज़ार कर रहे हैं. लोकसत्ता संपादक गिरीश कुबैर के मुताबिक़ पार्टियों की टूट के कारण भाजपा के सामने पार्टी के और आयातित नेताओं की राजनीतिक उम्मीदों को मैनेज करने की चुनौती है.
वरिष्ठ पत्रकार और किताब 'चेकमेट - हाऊ बीजेपी वॉन ऐंड लॉस्ट महाराष्ट्र' के लेखक सुधीर सूर्यवंशी कहते हैं, "राज ठाकरे के कारण उत्तर भारतीय भी बंटे हुए हैं. बिहार के लोग तेजस्वी यादव का समर्थन कर रहे हैं और एमवीए के साथ हैं. इससे भाजपा को नुक़सान होगा." मराठवाड़ा के जालना ज़िले के गांव अंतरवाली सराटी में मनोज-जरांगे पाटिल के प्रदर्शन स्थल से थोड़ी दूर ही रह रहीं मनीशा सचिन तारक के दो बच्चे हैं. मनीशा मराठा हैं और कहती हैं कि बेरोज़गारी और कम ज़मीन के टुकड़े की वजह से गुज़ारा मुश्किल से हो पाता है. उनके मुताबिक़ आरक्षण से उनके बच्चों को फ़ायदा होगा.
अकोला में विश्लेषक संजीव उन्हाले के मुताबिक़, "जरांगे पाटिल का सबसे बड़ा डर भाजपा को है. उनके ऊपर बहुत दबाव है. उनको उम्मीद नहीं थी कि पुलिस उनके ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई करेगी." गांव में हमें एक पाटिल समर्थक ने भाजपा के ख़िलाफ़ नाराज़गी जताई और कहा कि चुनाव के ठीक पहले इशारा दिया जाएगा कि मराठा समाज किस उम्मीदवार के पक्ष में वोट करे, हालांकि हमें भाजपा समर्थक मराठा समुदाय के एक व्यक्ति ने कहा कि ये कोई ज़रूरी नहीं है कि जरांगे पाटिल जिस उम्मीदवार के पक्ष में इशारा दें तो समुदाय उनके पक्ष में ही वोट करेगा.
विश्लेषक सुहास पलशीकर भी मानते हैं कि भाजपा सभी राजनीतिक चुनौतियों से निपटने के लिए प्रधानमंत्री मोदी पर निर्भर होगी और ये देखना दिलचस्प होगा कि प्रधानमंत्री मोदी महाराष्ट्र में कितनी रैलियां करते हैं.वो कहते हैं, "वोटरों में अभी भी प्रधानमंत्री मोदी पर भरोसा है. विपक्ष का प्रधानमंत्री मोदी पर हमला करना ग़लती है. इससे भाजपा को फ़ायदा होगा. मुझे लगता है कि विपक्ष स्थानीय मुद्दों पर ध्यान देगा."जैसे अमरावती के एक गांव में रहने वाले किसान विजय सिंह ठाकुर.
माना जा रहा है कि प्रकाश आंबेडकर की वंचित बहुजन अघाड़ी के उम्मीदवार एमवीए के वोट काट सकते हैं. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में वीबीए ने 47 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए थे और उन्हें सात प्रतिशत वोट मिले थे. माना गया कि उन्होंने कांग्रेस को कई सीटों पर नुक़सान पहुंचाया था.
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