क्या ओडिशा में खत्म हो रहा है बीजू जनता दल के प्रमुख और मुख्यमंत्री नवीन पटनायक का करिश्मा, बता रहे हैं संदीप साहू.
इस समय नवीन पटनायक देश में सबसे लंबे अरसे तक मुख्यमंत्री बने रहने वाले नेताओं की सूची में दूसरे नंबर पर हैं.
इसका परिणाम यह हो रहा है कि टिकट की आस लगाए बैठे बीजेडी के कई नेता टिकट न मिलने पर भाजपा का रुख कर रहे हैं. पार्टी के नंबर तीन माने जाने वाले संगठन सचिव प्रणब प्रकाश दास की मानें तो इस बार राज्य के 21 लोकसभा सीटों और 147 विधानसभा सीटों के टिकट के लिए 10,000 से अधिक लोगों ने आवेदन किया था.पार्टी कार्यकर्ताओं की शिकायत है कि प्रत्याशियों की इतनी भारी संख्या की बावजूद अन्य दलों से लोगों को बुलाकर टिकटें दिया जा रहा है.
पार्टी छोड़कर जाने वाले नेताओं के बारे में सस्मित पात्रा ने कहा, "वही लोग पार्टी छोड़कर जा रहे हैं, जिन्हे अंदेशा हो गया था कि इस बार उन्हें टिकट नहीं मिलेगा. ऐसे लोगों के जाने से पार्टी को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ने वाला है."प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ नवीन पटनायक अधिकांश बीजेडी नेता ये मानकर चल रहे हैं कि पार्टी के सुप्रीमो, जो अब 77 साल के हो चुके हैं, अगले चुनाव में पार्टी का नेतृत्व करने की शारीरिक और मानसिक स्थिति में नहीं होंगे.
इस कारण के बारे में बीजद के नेता दबी छिपी जुबान में बीजद में नवीन के सबसे करीबी माने जानेवाले मुख्यमंत्री के पूर्व व्यक्तिगत सचिव और अब पार्टी के नंबर दो वीके पांडियन की राजनीतिक महत्वाकांक्षा को बताते हैं. लेकिन भाजपा के साथ बातचीत विफल होने के बाद अचानक पांडियन कहीं नजर नहीं आ रहे. न किसी सार्वजनिक स्थल पर और न ही पार्टी के पोस्टरों में. अब हर पोस्टर में पांडियन के बदले एक बार फिर बीजू पटनायक की तस्वीर देखने को मिल रही है.जानकारों का मानना है कि नवीन पटनायक को अब यह बात समझ में आ गई है कि पांडियन को उनके उत्तराधिकारी के रूप में पेश किया जाना पार्टी के लिए घातक सिद्ध हो रहा है. लोगों में नवीन की लोकप्रियता अब भी बनी हुई है.
पत्रकार रवि दास का कहना है, "आप ने गौर किया होगा कि पांडियन अब नवीन निवास से अपना काम नहीं कर रहे. वे अब अपने घर से ही काम कर रहे हैं और तभी नवीन निवास जाते हैं जब उन्हें बुलावा आता है. और हमने पहले भी देखा है कि अपनी कुर्सी बचाने के लिए नवीन किसी को भी ताक पर रख सकते हैं." लोकसभा चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन और भी बेहतर रहा. पार्टी ने राज्य के 21 में से आठ सीटों पर जीत हासिल की. 2014 के आंकड़े से 13.4 फीसदी की लंबी छलांग लगाते हुए पार्टी का वोट प्रतिशत 38.4 फीसदी पर जा पहुंचा, जो बीजद के वोट प्रतिशत से केवल 4.4 फीसदी पीछे था. पहली बार पार्टी कांग्रेस को पछाड़ कर मुख्य विरोधी दल के रूप में उभरी.
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