डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद ये सवाल उठ रहे हैं कि रूस और यूक्रेन के बीच जारी जंग, मध्य पूर्व में इसराइल और हमास के बीच और लेबनान में इसराइल और हिज़्बुल्लाह के बीच जो संघर्ष चल रहे हैं, उनका क्या होगा?
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव को लेकर लगाए जा रहे तमाम कयासों के बीच रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप ने आसानी से जीत हासिल कर ली.बीते हफ़्ते पूरी दुनिया ने जिस ख़बर पर नज़रें जमा रखी थीं, वो था अमेरिका में राष्ट्रपति का चुनाव. ऐसा कहा जा रहा था कि चुनाव का फ़ैसला काफ़ी कम अंतर से होगा.अब जबकि डोनाल्ड ट्रंप चुनाव जीत चुके हैं.
दिव्या आगे कहती हैं, “ये समर्थन तब भी दिया गया जब ट्रंप ने साल 2016 के कार्यकाल में 7 मुस्लिम देशों से मुसलमानों के आने पर प्रतिबंध लगाया था.” पूर्व राजनयिक अरुण कुमार सिंह का कहना है, “डोनाल्ड ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में इसराइल को पूरा समर्थन दिया था. उन्होंने इसराइल और फ़लस्तीन के बीच शांति समझौते के लिए एक रूपरेखा तैयार की थी, लेकिन उससे बात नहीं बनी. क्योंकि फ़लस्तीन के लोग जो चाहते थे उसमें उसकी कोई संभावना नहीं थी.”
इस पर बीबीसी संवाददाता तरहब असग़र कहती हैं, "अगर मीडिया की बात करें तो ज़्यादातर एनालिसिस के मुताबिक़ अलग-अलग जंगों में अमेरिका जो पैसे दे रहा है उसकी बात की जा रही है कि नेटो का क्या किरदार होगा." तरहब बताती हैं, "अभी जो युद्ध चल रहे हैं इसको लेकर लोगों की अलग-अलग राय है. कुछ लोगों का मानना है कि ये युद्ध ख़त्म होना चाहिए. वहीं कुछ लोगों का कहना है कि अमेरिकन फर्स्ट पॉलिसी के मुताबिक़ वहां जो पैसा लगाया जा रहा है वो यहां के लोगों पर लगाया जाए."
उन्होंने कहा, “हमने देखा कि किस तरह इसराइल ने अपने रक्षा मंत्री को हटाया, जिससे आंतरिक विवाद बढ़ता जा रहा है. उसको लेकर जो आलोचनाएं हो रही हैं वो ज़्यादा दबाव पैदा करेंगी.” उन्होंने कहा, “इसराइल की सिविलियन इकोनॉमी और हाईटेक सेक्टर से लोग निकलकर इस युद्ध में लगे हुए हैं. ऐसे में इकोनॉमी को लंबे समय तक बनाए रखना उनके लिए मुश्किल होगा. लेकिन डोनाल्ड ट्रंप की तरफ़ से उनके ऊपर कोई रोक नहीं लगाई जाएगी.”जानकार मानते हैं कि अगर हम डोनाल्ड ट्रंप के साथ काम करेंगे तो हमेशा एक अस्थिरता जैसी स्थिति बनी रहेगी. ये पता नहीं होगा कि किस परिस्थिति में उनकी क्या प्रतिक्रिया होगी.
उन्होंने कहा, “पहले कहा जाता था कि ईरान को परमाणु हथियार बनाने में एक साल लगेगा लेकिन अब कुछ हफ़्तों या कुछ महीनों की बात करते हैं. ट्रंप की उस वक्त की नीति से भले ही ईरान के ऊपर आर्थिक दबाव आया लेकिन उनके नीति चयन पर कोई असर नहीं पड़ा था.” “ज़्यादातर लोगों का मानना है कि मध्य पूर्व के मुक़ाबले यूक्रेन-रूस का युद्ध का पैमाना ज़्यादा बड़ा नहीं है. इसलिए ये संघर्ष मध्य पूर्व संघर्ष से पहले हल हो सकता है.”
इस पर दिव्या कहती हैं, “अगर रूस-यूक्रेन की बात करें तो ये भी सवाल उठता है कि क्या वो पुतिन को इस युद्ध विराम के लिए मना पाएंगे. अगर पुतिन उनकी बात नहीं मानते हैं तो ऐसे में क्या डोनाल्ड ट्रंप और ज़ोर-शोर से यूक्रेन की मदद करेंगे, ये देखना होगा.”डोनाल्ड ट्रंप को अमेरिका में जिन लोगों ने कमला हैरिस से ज़्यादा किया पसंदअमेरिका के लिए कैसे दिक्कत पैदा करेगा चीन?
उन्होंने कहा, “क्योंकि जब तक ट्रंप आए थे उस समय तक यूरोपीय देश इंडो पैसिफिक क्षेत्र में सुरक्षा समस्याओं पर बिल्कुल ध्यान नहीं देते थे. सिर्फ चीन के साथ व्यापारिक रिश्ते बनाना चाहते थे.”
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