ज्ञानवापी मामले की सुनवाई के दौरान तत्कालीन सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की मौखिक टिप्पणी के बाद बढ़ी सर्वे की मांग पर सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकीलों और क़ानूनी जानकारों का क्या कहना है.
पिछले सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने ज्ञानवापी मामले की सुनवाई के दौरान मई 2022 में मौखिक टिप्पणी में कहा था- उपासना स्थल अधिनियम 15 अगस्त 1947 की स्थिति के अनुसार, किसी भी संरचना के धार्मिक चरित्र की “जांच करने” पर रोक नहीं लगाता है.ज्ञानवापी मामले की सुनवाई के दौरान तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने एक मौखिक टिप्पणी की थी.
उन्होंने कहा था कि प्लेसेस ऑफ़ वर्शिप एक्ट 1991 15 अगस्त 1947 की स्थिति के अनुसार, किसी भी संरचना के धार्मिक चरित्र की “जांच करने” पर रोक नहीं लगाता है. तत्कालीन सीजेआई की इस मौखिक टिप्पणी को ट्रायल कोर्ट और बाद में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने क़ानूनी अधिकार के तौर पर लिया. राज कहते हैं, “संसद का एक अधिनियम न केवल जनता के फ़ैसले की अभिव्यक्ति है बल्कि यह एक ऐसा उपकरण भी है जिसे देश ने धार्मिक कट्टरता के ख़तरे से खुद को बचाने के लिए विकसित किया. यह उन सभी मामलों में सबक देता है जिसे हमने अतीत में सीखा हैं. हमारी अदालतों और संस्थानों को इतिहास से सीख लेनी चाहिए.”संभलः हिंसा में जो लोग मारे गए वो कौन थे, अब कैसा है माहौल? - ग्राउंड रिपोर्टक्या है आगे का रास्ता?
वो कहते हैं, "सुप्रीम कोर्ट में इसको लेकर एक याचिका दायर की जा सकती है जिसमें यह मांग की जाए कि उपासना स्थल क़ानून के मद्देनज़र कोई भी सर्वे या खुदाई नहीं करवा सकता है. इससे इस तरह की बहुत सी गड़बड़ियों पर रोक लग जाएगी.”संभल की जामा मस्जिद को लेकर विवाद क्या है और कैसा है शहर का माहौल?इस पर संजय हेगड़े कहते हैं, “सुप्रीम कोर्ट बहुत कम मामलों में स्वतः संज्ञान लेता है.
इसके तहत यह फ़ैसला दिया जा सकता है कि बिना सुप्रीम कोर्ट की अनुमति के किसी स्थान के धार्मिक चरित्र पर सवाल उठाने वाला कोई मुकदमा दायर नहीं किया जा सकता.जून 2022 में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयान के बाद मिले सभी संकेतों से ऐसा लगता है कि संघ के रुख़ में कोई बदलाव नहीं आया है.भागवत का यह रुख़ था कि, “आक्रमणकारियों ने हिंदुओं का मनोबल तोड़ने और धर्म परिवर्तन कर बने नए मुसलमानों के बीच अपनी छवि बनाने के लिए मंदिरों को तोड़ना शुरू किया था.
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