Russia पर प्रतिबंधों का भारत पर कैसे प्रभाव पड़ रहा है? | madversity
अगर poetic injustice जैसा कुछ होता है तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार जल्द ही ऐसा कुछ अनुभव कर सकती है.ने खुद को राजनीतिक रूप से मजबूत रखने के लिए कुछ जोखिम भरे आर्थिक फैसले किए, लेकिन आने वाले कुछ हफ्तों में उनकी सरकार ऐसी चुनौतियों का सामना कर सकती है जिससे उनका कोई लेना देना भी नहीं है और ये है रूस—यूक्रेन युद्ध.तेल की कीमतें आसमान छू रही हैं. लेकिन तेल की कीमतों के बढ़ने का ये समय सबसे बुरा समय है ऐसा नहीं कहा जा सकता. इससे पहले आपको एक सीधे से तथ्य को समझना होगा.
इसके अलावा भारत खेती की लिए जरूरी फर्टिलाइजर्स और सूरजमुखी के तेल का आयात यूक्रेन से करता है. भारत के रिजर्व बैंक पर ब्याज दरों को बढ़ाने का दबाव बढ़ रहा है क्योंकि अमेरिका पहले ही ऐसा करने जा रहा है जबकि घरेलू चीजों की महंगाई 6 प्रतिशत तक बढ़ गई है और ये एक इशारा है कि लोन महंगे हो जाएंगे. अब वो शायद ये समझ गई हैं कि उनके प्रयास फेल हो गए हैं और उन्हें सबकुछ फिर से शुरू करना होगा. जाहिर है कि आप उनकी जगह पर नहीं रहना चाहेंगे. वह खुद इस बात को स्वीकार करती हैं कि तेल एक निगेटिव सरप्राइज था और बजट कैलकुलेशन तब किया गया था, जब तेल की कीमतें 85 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल थीं.यहां अब हमें कुछ सकारात्मकता देखने की कोशिश करनी चाहिए. अगर अमेरिका के रिकवरी स्टॉल्स, अमेरिकी कंपनियां, भारतीय आईटी कंपनियों से और ज्यादा आउटसोर्स के विकल्प को चुनती हैं, तो इसका फायदा होगा.
भारत अपनी जरूरत का 85 प्रतिशत तेल आयात करता है. तेल की कीमतें ग्राहकों तक सरकार की मंशा के हिसाब से पहुंचती हैं. हालांकि इसमें देरी हो सकती है, ये क्रमबद्ध तरीके से बढ़ सकता है और काफी हद तक ये इस पर निर्भर करता है कि ये रूस—यूक्रेन की लड़ाई कितनी लंबी चलेगी.
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