आज का शब्द: रुधिर और सुमित्रानंदन पंत की कविता 'ग्राम श्री'

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आज का शब्द: रुधिर और सुमित्रानंदन पंत की कविता 'ग्राम श्री'
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हिंदी हैं हम शब्द-श्रृंखला में आज का शब्द है रुधिर जिसका अर्थ है रक्त; लहू। कवि सुमित्रानंदन पंत ने अपनी कविता में इस शब्द का प्रयोग किया है। फैली खेतों में दूर तलक मखमल की कोमल हरियाली, लिपटीं जिससे रवि की किरणें चाँदी की सी उजली जाली! तिनकों के हरे-हरे तन पर हिल हरित रुधिर है रहा झलक, श्यामल भूतल पर झुका हुआ नभ का चिर निर्मल नील फ़लक! रोमांचित-सी लगी वसुधा आई जौ गेहूँ में बाली, अरहर सनई की सोने की किंकिणियाँ हैं शोभाशाली! उड़ती भीनी तैलाक्त गंध फूली सरसों पीली-पीली, लो, हरित धरा से झाँक रही...

मंजरियों से लद गई आम्र तरु की डाली, झर रहे ढाक, पीपल के दल, हो उठी कोकिला मतवाली! महके कटहल, मुकुलित जामुन, जंगल में झरबेरी झूली, फूले आड़ू, नींबू, दाड़िम, आलू, गोभी, बैंगन, मूली! पीले मीठे अमरूदों में अब लाल-लाल चित्तियाँ पड़ी, पक गए सुनहले मधुर बेर, अँवली से तरु की डाल जड़ी! लहलह पालक, महमह धनिया, लौकी औ‘ सेम फलीं, फैलीं मखमली टमाटर हुए लाल, मिरचों की बड़ी हरी थैली! बालू के साँपों से अंकित गंगा की सतरंगी रेती सुंदर लगती सरपत छाई तट पर तरबूज़ों की खेती; अँगुली की कँघी से बगुले कलँगी सँवारते...

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