आज का शब्द: अकूत और कुमार अम्बुज की कविता- सरसराहट की भी जो एक भाषा है
' हिंदी हैं हम ' शब्द शृंखला में आज का शब्द है- अकूत , जिसका अर्थ है- बहुत अधिक। प्रस्तुत है कुमार अम्बुज की कविता- सरसराहट की भी जो एक भाषा है सरसराहट की भी जो एक भाषा है जैसे चहचहाहट की और चुप्पी की धूप की उदासी की और चंद्रमा के दिखने की एक भाषा है जैसे अन्याय के दृश्य की और निद्रा हर लेने वाले स्वर की जैसे बढ़ई के रंदे की और नाविक के चप्पू की जो भाषा है इन अनंत भाषाओं के बीच जो जानी-पहचानी-सी भाषाएँ हैं चलन में उनमें से एक भाषा के सामर्थ्य के कोलाहल और एकांत में रहता है कवि...
समाज के हाशिए पर बैठा हुआ जैसे ठीक बीच में एक दिन जो उसकी बेचैनी है उससे कहती है भुगतो उसकी यातना भी जो दी जा रही है निरपराध को चीख़ के बाद के एक स्त्री के मौन में जाकर रहो नींद में रह रही उसकी सिसकी में ठहरो और उस नीली लौ में जो बुझने से पहले निर्बल दीपशिखा के पेराबोला में चमकती थी तेज़ और उस कराह में जो ग़रीबी से पैदा होती है लिखो हमारे प्रेम को असमर्थ भाषा के किसी समर्थ दिखते कमज़ोर से शब्द में एक कोशिश के गर्भ में रहो और देखो कि वह निष्फल न हो इस बार नश्वर में रहते हुए अनश्वर की तरह जो जीवन...
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